अपना जीवन आनंदमय बनाएं

“संसार में अच्छे लोग भी हैं, और बुरे लोग भी हैं। बुरे लोगों से बचकर रहें, अच्छे लोगों के साथ मिलकर जीवन जिएं। आप का जीवन आनंदमय होगा।”
लोग बहुत चिंता आदि से ग्रस्त हैं, कि संसार में दुष्टता अन्याय शोषण झूठ छल कपट अत्याचार चोरी डकैती लूटमार स्मगलिंग इत्यादि बुरे काम बहुत अधिक होते हैं। आप चिंता न करें।
“ये तो अनादि काल से चल रहे हैं, और अनंत काल तक चलते रहेंगे। न कभी खत्म हुए, और न कभी खत्म होंगे।”
आप इन बुरे कर्मों को समाप्त नहीं कर सकते। जब तक लोगों में अविद्या राग द्वेष आदि क्लेश विद्यमान हैं, तब तक ये पाप समाप्त नहीं होंगे। “और ये क्लेश करोड़ों में से किसी एक आध व्यक्ति के ही समाप्त हो पाते हैं। वही व्यक्ति सुधरता है, और अच्छे काम करके मोक्ष में चला जाता है।” बाकी तो यूं ही जन्म मरण चक्र में पड़े रहते हैं। “आप कितना भी जो़र लगा लें, संसार के लोगों को अधिक नहीं बदल सकते। बल्कि ऐसा कहना उचित है कि “आप बदल तो बिल्कुल भी नहीं सकते, जब तक वे स्वयं को बदलना न चाहें।”
दूर क्यों जाते हैं, आप स्वयं अपने ऊपर यही बात लागू करके देखिए।
“क्या कोई व्यक्ति आपकी इच्छा के बिना आप को बदल सकता है?
नहीं बदल सकता। जब तक आप स्वयं बदलना नहीं चाहेंगे, तब तक आपको कोई दूसरा व्यक्ति नहीं बदल सकता। आपके दोषों को छुड़वा नहीं सकता। आपके अंदर उत्तम गुणों की स्थापना नहीं कर सकता।”
जो बात आप पर लागू होती है वही बात सारी दुनियां पर लागू होती है। आप भी दूसरों को नहीं बदल सकते, जब तक वे नहीं चाहेंगे। “इसलिए संसार की बुराइयों को देखकर अपनी चिंता न बढ़ाएं। यह संसार ऐसा ही था, और ऐसा ही रहेगा।”
क्या ईश्वर इस संसार को नहीं देख रहा?
वह भी देखता है. 24 घंटे देखता है। सब को देखता है। सबको अच्छी बात सिखाता है। अच्छे काम करते समय सबके मन में आनंद उत्साह एवं निर्भयता की भावना उत्पन्न करता है। यह उसका संकेत है, कि “भाई अच्छे काम करते रहो, मेरी ओर से आपको बहुत आशीर्वाद है।” और जब लोग बुरे काम करते हैं, तब भी ईश्वर उन्हें मन में सूचित करता है, “भय शंका लज्जा की भावना उत्पन्न करके उन्हें बुराइयों से बचने की सलाह देता है।” फिर भी लोग ईश्वर की बात नहीं सुनते। क्योंकि कर्म करने में उन्हें छूट है। वे अच्छा कर्म करें, या बुरा कर्म करें। जो भी करें, ईश्वर उनका हाथ नहीं पकड़ता।
“परीक्षा का यह नियम होता है, कि परीक्षा काल में परीक्षक, परीक्षार्थी का हाथ नहीं पकड़ सकता। स्कूल की परीक्षा में तो परीक्षक, परीक्षार्थी को इतना भी नहीं बता सकता, कि तुम गलत उत्तर लिख रहे हो।” ईश्वर की तो महती कृपा है कि वह परीक्षा काल में भी हमें 24 घंटे बताता रहता है, कि “भाई, यह काम बुरा है. इसे मत करो।”
परंतु उसकी रोकने की सीमा है। सूचना देने तक ही उसका कार्य है। आगे बुरे काम करते समय मनुष्यों का हाथ पकड़ना उसका काम नहीं है।
“जब सर्वज्ञ सर्वशक्तिमान ईश्वर रोज सबको समझाता है, कि बुरे काम मत करो। फिर भी संसार के लोग उस सर्वज्ञ सर्वशक्तिमान सर्वव्यापक न्यायकारी ईश्वर की बात भी नहीं सुनते, नहीं मानते ?
फिर आपकी और मेरी बात तो कौन सुनेगा ?
“ उसके समझाने पर भी लोग रोज बुरे काम करते ही हैं। इसलिए आप अधिक चिंता न करें, कि यह दुनिया बहुत बिगड़ गई है। “यह तो पहले भी बिगड़ी हुई थी। आज भी बिगड़ी हुई है, और आगे भी बिगड़ी हुई रहेगी।”
इन सब बातों को समझते हुए आपको क्या करना है? आपको बस इतना करना है, कि “एक बात – बिगड़े हुए लोगों से दूर रहें। उनसे अपना बचाव करें, ताकि वे आप की हानि न कर पाएं। जैसे चींटियां नमक से दूर रहती हैं। दूसरी बात – अच्छे लोगों से संबंध रखें, ताकि उनसे आपको सुख मिले। जैसे चींटियां चीनी के दाने खा लेती हैं। और तीसरी बात – अपना संकल्प मजबूत रखें कि “दुनिया भले ही सुधरे या बिगड़े, हम नहीं बिगड़ेंगे, और हम अवश्य सुधरेंगे।” यदि आप इतना कर लेंगे, तो आपका जीवन आनंदमय होगा।“
— स्वामी विवेकानंद परिव्राजक