ईश्वर को क्या-क्या पसंद है

“समाज में ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य आदि बहुत प्रकार के लोग हैं। सबको ईश्वर ने कुछ न कुछ विशेष शक्तियां योग्यताएं सामर्थ्य दिया है। आप भी उन्हीं में से एक हैं। यदि आप उन शक्तियों योग्यताओं से देश धर्म की सेवा करेंगे, अच्छे काम करेंगे, तब ईश्वर आपको पसन्द करेगा।”
आपको ईश्वर ने विद्या धन बल सेवा नम्रता बुद्धिमत्ता परोपकार की भावना आदि बहुत सारी संपत्तियां दी हैं।
“जिसके पास विद्या है वह ब्राह्मण कहलाता है। जन्म से कोई ब्राह्मण नहीं होता, गुण कर्म योग्यता से ही होता है। जैसे जन्म से कोई डॉक्टर नहीं होता। जन्म से कोई वकील नहीं होता। जन्म से कोई पायलट नहीं होता। जब तक वह पढ़ लिखकर वैसी योग्यता न बना ले, तब तक उसे डॉक्टर वकील पायलट इंजीनियर आदि डिग्रियां नहीं दी जाती हैं। ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य भी डिग्रियां हैं, जो कि गुण कर्म योग्यता से मिलती हैं।” “किसी को जन्म से ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य मानना उतना ही गलत है, जितना कि जन्म से डॉक्टर इंजीनियर वकील पायलट मानना।”
जब ईश्वर ने अच्छे माता-पिता अच्छे गुरु जन और अच्छी-अच्छी विद्याएं संसार में वेदों के माध्यम से प्रकट की हैं, और प्रत्येक व्यक्ति कर्म करने में स्वतंत्र भी है। तो वह अपनी स्वतंत्रता का सदुपयोग करते हुए उन विद्याओं को कलाओं को योग्यताओं को प्राप्त करे।
“जो व्यक्ति पुरुषार्थ करता है, उसे ऐसी विद्याएं योग्यताएं कलाएं बल शक्ति सामर्थ्य धन आदि ईश्वर की कृपा से प्राप्त हो जाता है।”
सृष्टि बनाने और वेदों की विद्याएं आदि देने का ईश्वर का भाव यह है कि “ईश्वर ने जिसको जो भी विद्या धन बल सेवा नम्रता बुद्धिमत्ता परोपकार आदि सामर्थ्य दिया है, उस सामर्थ्य से वह देश धर्म की सेवा करे, रक्षा करे।” “जो लोग ऐसा करते हैं, ईश्वर उनसे प्रसन्न होता है, अर्थात उन्हें अच्छा मानता है। उन्हें पुरस्कार देता है। उन्हें सब प्रकार से सुख देता है। और जो लोग ईश्वर की दी हुई संपत्तियों का दुरुपयोग करते हैं, उन शक्तियों से बल विद्या धन आदि से दूसरों को दुख देते हैं, ईश्वर भी उनसे नाराज हो जाता है, तथा समय आने पर उन्हें बहुत कठोर दंड देता है।”
“अच्छे काम करने से ईश्वर का आनंद नहीं बढ़ता।” वह तो पहले ही सर्वगुण संपन्न तथा आनंद से तृप्त है। उसे और अधिक आनंद की आवश्यकता नहीं है। और न ही ईश्वर को कोई और अधिक आनंद दे सकता है। “बुरे काम करने से ईश्वर दुखी नहीं होता।” लेकिन ईश्वर न्यायकारी है। इसलिए समय आने पर वह दंड और इनाम तो अवश्य देता है। यदि आप ईश्वर के दंड से बचना चाहते हों, और ईश्वर से पुरस्कार प्राप्त करना चाहते हों, तो वही काम करें, जो ईश्वर को पसंद हों, अर्थात उसने वेदों में संविधान के रूप में जो काम करने को बताए हैं।
ईश्वर को क्या-क्या पसंद है?
“ईश्वर को आंखों में प्रेम पसंद है। हाथ वही पसंद हैं जो सेवा करते हों। बल उसी शक्तिशाली व्यक्ति का पसंद है जो कमजोर लोगों की रक्षा करता हो। वाणी तथा मस्तिष्क वही पसंद है जो दूसरों की अविद्या को दूर करते हों। और जीवन वही पसंद है, जिसमें नम्रता हो।”
—– स्वामी विवेकानंद परिव्राजक