तनाव रहित होकर परोपकारमय जीवन को जिएं

“धोखा देने का अर्थ ‘झूठ बोलकर मूर्ख बनाना,’ यहीं तक सीमित नहीं है। और भी अनेक प्रकार से धोखा दिया जाता है।”
प्रायः ऐसा माना जाता है, कि किसी ने दूसरे व्यक्ति को झूठ बोलकर मूर्ख बनाया। तो लोग कहते हैं कि “साहब यह बड़ा धोखेबाज है. इसने हमको झूठ बोलकर बहका दिया। यह अच्छा व्यक्ति नहीं है।” जी हां, यह बात ठीक है। बहुत से लोग झूठ बोलकर धोखा देते हैं, एक दूसरे को मूर्ख बनाते हैं। यह भी धोखा देना ही कहलाता है।
परंतु इसके अतिरिक्त धोखा देने के और भी स्वरूप हैं। उदाहरण के लिए – एक व्यक्ति, किसी दूसरे व्यक्ति से मन में घृणा करता है, उसके मन की घृणा को तो दूसरा व्यक्ति नहीं देख पाता। परंतु उस की वाणी और व्यवहार की तो वह भी परीक्षा कर सकता है। जब वह घृणा करने वाला व्यक्ति बोलता है, तो सुनने वाला व्यक्ति उसका परीक्षण करता है। कि उसकी बातों से ऐसा अनुभव करता है, कि “वह छल करता है। मेरी बात को तोड़ मरोड़ के प्रस्तुत करता है। जो अभिप्राय मैं कहना चाहता हूं, मेरी बात से वह अर्थ नहीं निकालता, बल्कि उससे कोई दूसरा ही अर्थ निकालता है।” इसे छल कहते हैं।
फिर वह आगे भी अनुभव करता है। “इसका शारीरिक आचरण भी ऐसा है, कि जिससे इस को फायदा हो, और मुझे नुकसान हो। यह तो बहुत भयंकर धोखेबाज है।” इस प्रकार से ये भी धोखा देने के स्वरूप हैं।
संसार में आपको ऐसे बहुत लोग मिलेंगे, जो इस प्रकार का धोखाधड़ी और चालाकी का व्यवहार करते हैं। “ऐसे लोग आपके परिवार में हो सकते हैं। समाज में हो सकते हैं। दुकान ऑफिस ट्रेन बस आदि सब जगह पर आपको ऐसे लोग मिलेंगे, जो धोखेबाज होते हैं। वे मन वाणी शरीर, तीनों तरह से आपकी हानि कर सकते हैं।” “ऐसे लोगों से सदा सावधान रहें। प्रत्येक व्यक्ति की बात को ध्यान पूर्वक सुनें, उसकी मन ही मन परीक्षा करते जाएं। दूसरे व्यक्ति के चेहरे के लक्षणों को पढ़ना सीखें। और धीरे-धीरे अभ्यास करके उनके मन की भावना को जानने का प्रयत्न करें। उनके शारीरिक आचरण पर भी ध्यान देवें। और देखें, यह किस भावना से दूसरों के साथ व्यवहार करता है।”
इस प्रकार से लंबे समय तक परीक्षण करते-करते आपकी योग्यता बहुत अच्छी बन जाएगी। और “आप धीरे-धीरे व्यवहार कुशल हो जाएंगे। दूसरों को पहचानने लगेंगे। स्वयं अपनी गड़बड़ियां भी पहचानेंगे, और दूसरों की भी।” “अतः स्वयं अपनी गड़बड़ से बचकर अच्छे कर्म करें। किसी के साथ धोखेबाजी न करें। और दूसरे धोखेबाज लोगों से भी सावधान रहें। उनसे अपनी रक्षा करें। तथा तनाव रहित होकर आनंद से यज्ञमय = परोपकारमय जीवन को जिएं।”
— स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक