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दूसरों की गलतियों को माफ करना

दूसरों की गलतियों को माफ करना

“व्यक्ति दूसरे की गलतियों को तो माफ नहीं करता, स्वयं गलती करके दूसरों से माफी चाहता है। यह तो असंभव, अतिस्वार्थ और मूर्खता का लक्षण है।”
बहुत से लोग स्वयं को बहुत चतुर मानते हैं, जबकि उनमें चतुराई नहीं, बल्कि मूर्खता होती है। कुछ लोग ऐसा व्यवहार करते हैं, कि “जब कोई दूसरा उनके साथ गलती कर बैठे, और वह उनसे माफी मांगे, तो वे माफ नहीं करते। परंतु जब ऐसे स्वार्थी लोग दूसरों के प्रति कोई गलती करते हैं, तब वे चाहते हैं, कि दूसरा व्यक्ति उन्हें माफ कर दे।” “कितनी मूर्खता दुष्टता और धृष्टता की सोच है यह। ऐसा सोचना और व्यवहार करना अत्यंत अनुचित है।” इसलिए ऐसे लोग कभी न तो अपना कल्याण कर सकते, और न ही दूसरों का।


बुद्धिमत्ता इसका नाम है, कि “आप पूरी सावधानी से दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करें। कहीं भी गलती ना होने दें।” फिर भी मनुष्य अल्पज्ञ है, अल्पशक्तिमान है, कहीं न कहीं उससे भूल हो जाती है। “इस प्रकार से मानव स्वभाव के कारण, या अल्पज्ञता के कारण, अल्पशक्तिमत्ता के कारण, यदि कभी आपसे भूल हो भी जाए। तो जैसे आप दूसरों से अपनी भूल की माफी चाहते हैं, वैसे ही जब कभी आपके साथ कोई दूसरा व्यक्ति गलती कर दे, और वह आपसे माफी मांगे, तो आपको भी उसे माफ़ कर देना चाहिए। यही व्यवहार शुद्ध है।”


यद्यपि सच तो यही है, कि “कोई किसी को माफ नहीं करता।” फिर भी लोक व्यवहार निभाने के लिए एक औपचारिकता जरूर निभाई जाती है, कि “मुझसे गलती हो गई, कृपया आप मेरी गलती को माफ कर दें।”


प्रश्न — माफ करने का सही अर्थ क्या है?
उत्तर — माफ करने का सही अर्थ है, कि “यदि किसी दूसरे व्यक्ति ने आपके साथ कुछ गलत व्यवहार कर दिया, उससे आपकी कुछ न कुछ हानि हुई। उस हानि से आपको कष्ट हुआ। आपने अपमान का अनुभव किया। तो आपके मन में जो उसके प्रति क्रोध उत्पन्न होगा, यदि आप उसे बिल्कुल हटा दें, और उस व्यक्ति को पहले जैसा शुद्ध व्यक्ति मान लें, जैसा गलती करने से पहले आप उसे मानते थे। इसका नाम माफ कर देना है।” ऐसा तो कोई भी नहीं करता। न कोई कर सकता। क्योंकि यह बात न्याय नियम के विरुद्ध है। मनोविज्ञान के विरुद्ध है। आप न्याय और मनोविज्ञान के विरुद्ध कार्य नहीं कर सकते। इसलिए आप उसे माफ़ नहीं करते। अर्थात “आपके मन के एक कोने में कहीं न कहीं उसके प्रति एक गांठ बन जाती है, कि – “इसने मेरी हानि की है। मुझे दुख दिया है, यह दुष्ट व्यक्ति है। या तो मैं इसे दंडित करूंगा। और यदि दंड नहीं दे पाया, तो कम से कम इसको दुष्ट तो अवश्य ही मानूंगा। भविष्य में इससे सावधान भी जरूर रहूंगा।” यह विचार तो आपके मन में अवश्य रहेगा ही। इसे कोई भी नहीं निकाल सकता। जब आप उसे इस रूप में माफ़ नहीं कर पाए, तो सोच लीजिए। जब आप भी दूसरों के साथ गलतियां करेंगे, तब दूसरे लोग भी आप को माफ नहीं करेंगे। वे लोग भी आपको पूर्ववत् शुद्ध व्यक्ति नहीं मानेंगे। क्योंकि ऐसा मानना असंभव है।


“इसलिए बुद्धिमत्ता इसी में है, कि दूसरों को दुख न देवें। दूसरों पर अत्याचार न करें। सबके साथ पूरी सावधानी से और न्यायपूर्वक उत्तम व्यवहार करें। फिर भी यदि गलती हो जाए, तो कम से कम माफी मांगने की औपचारिकता तो अवश्य निभाएं। इससे उसका गुस्सा पूरी तरह तो नहीं निकलेगा, परन्तु कुछ कम अवश्य हो जाएगा, जिससे आगे व्यवहार चलाने में थोड़ी सुविधा होगी।”

One thought on “दूसरों की गलतियों को माफ करना”

  1. Priyesh says:

    बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति

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