सफलता और असफलता की पहचान क्या है?

“सफलता और असफलता की पहचान क्या है? ‘हृदय से सम्मान मिलना,’ सफलता की पहचान है। और ‘दिखावे का सम्मान मिलना,’ असफलता की।”
प्रतिदिन लोग एक दूसरे से मिलते हैं। परस्पर व्यवहार करते हैं। नमस्ते स्वागत सम्मान आदि करते हैं। “एक दूसरे को उपहार/ गिफ्ट आदि देकर भी अनेक प्रकार से सम्मानित करते हैं, और एक दूसरे को अपने अनुकूल बनाने का प्रयास करते हैं।”
यह जो एक दूसरे को सम्मान दिया जाता है। यह सम्मान दो प्रकार का होता है। एक तो – “वास्तविक (असली) सम्मान अर्थात निर्भय होकर श्रद्धा पूर्वक हृदय से किया गया सम्मान।” और दूसरा – “सिर्फ दिखावे का सम्मान, या नकली सम्मान।”
“वास्तविक सम्मान में, सम्मान कर्ता के हृदय में, सम्माननीय व्यक्ति के प्रति श्रद्धा होती है, प्रेम होता है, समर्पण होता है, सद्भावना होती है, विश्वास होता है। उसके चेहरे पर वास्तविक प्रसन्नता होती है।” “नकली सम्मान में अर्थात जो सम्मान करने का दिखावा किया जाता है उसमें, हृदय में कोई प्रेम, श्रद्धा, सद्भावना, समर्पण, विश्वास आदि कुछ नहीं होता। ऊपर ऊपर से, केवल चेहरे से नकली प्रसन्नता दिखाई जाती है।” कभी कभी कमरे आदि स्थान की कुछ सजावट भी कर ली जाती है। इस प्रकार से कुछ बाह्य आडंबर किया जाता है, जिससे कि सामने वाले व्यक्ति को ऐसा लगे, कि “हम आप का सम्मान करते हैं।” सम्मान के पहले प्रकार में ‘असली सम्मान’ है, और दूसरे प्रकार में ‘नकली सम्मान’ है।”
“बुद्धिमान लोग दोनों प्रकार के व्यवहार को समझ लेते हैं, कि सामने वाला व्यक्ति जो मुझे सम्मान दे रहा है, यह वास्तविक सम्मान है, हृदय से किया जा रहा है। अथवा नकली सम्मान है। सम्मान करने का केवल दिखावा किया जा रहा है।” परंतु “मूर्ख लोग इन दोनों का अंतर नहीं समझते। वे नकली सम्मान को भी असली सम्मान मानकर अपनी मूर्खता से खुश हो जाते हैं।” “कुछ आधे अधूरे बुद्धिमान लोग पहचान भी लेते हैं, कि सामने वाला नकली सम्मान कर रहा है। वह मेरी विद्या से, कला से, चतुराई से, धूर्तता आदि गुण दोषों के कारण मुझसे डरता है। वह गुणों में या चतुराई आदि में मुझसे कुछ कमजोर है, इसलिए मुझसे डरता है। फिर भी ऊपर ऊपर से नकली सम्मान करता है।” परन्तु इतना समझने पर भी वे आधे अधूरे बुद्धिमान लोग अपने उन दोषों को दूर नहीं करते, जिन दोषों के कारण सामने वाला व्यक्ति उनसे डरता है। उनका असली सम्मान नहीं कर पाता, और सम्मान करने का बस दिखावा ही करता है। नकली सम्मान करता है। “इस प्रकार के लोग, अपने दोषों को दूर करने के लिए कोई पुरुषार्थ विशेष नहीं करते। ऐसे लोग, ‘आधे अधूरे बुद्धिमान तथा असफल व्यक्ति’ कहलाते हैं। जो मूर्ख लोग हैं, नकली सम्मान को असली सम्मान मानकर खुश हो जाते हैं, वे भी असफल हैं। और जिनका वास्तव में हृदय से सम्मान किया जाता है, ऐसे लोग ही वास्तव में ‘पूरे बुद्धिमान तथा अपने जीवन में सफल’ व्यक्ति कहलाते हैं।”
आप भी विचार करें। आप दोनों में से किस कोटि में हैं, सफल या असफल? “यदि आप असफल व्यक्ति की कोटि में हों, तो अपने दोषों को दूर कर के सफल व्यक्ति बनें, और असली सम्मान को प्राप्त करें। तभी जीवन में वास्तविक आनन्द मिलेगा।”
—- स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक