सुख मुफ्त में नहीं मिलता

“जीवन में सुख प्राप्त करना तो सब चाहते हैं, परन्तु उसके लिए मेहनत नहीं करना चाहते। अब सुख मुफ्त में तो मिलता नहीं। सुख प्राप्ति के लिए मेहनत भी करनी पड़ती है।”
सुख कैसे मिलता है? “नम्रता सभ्यता विद्या बुद्धिमत्ता पुरुषार्थ सेवा परोपकार दान दया निष्पक्ष न्यायपूर्ण व्यवहार सत्य का पालन मन की शुद्धता इत्यादि गुण कर्मों से मिलता है।” इन सब नम्रता आदि गुणों को धारण करने में और परोपकार आदि कार्यों को करने में बहुत परिश्रम करना पड़ता है।
व्यक्ति चाहता है, कि समाज में मेरी प्रतिष्ठा हो, मेरी प्रसिद्धि हो, मुझे सम्मान मिले, मुझे धन मिले, मुझे उच्च पद पर बिठाया जाए, इत्यादि बहुत सी इच्छाएं व्यक्ति के मन में होती हैं। इसी को उन्नति अथवा ऊपर उठना कहते हैं। “अब लोग ऊपर तो उठना चाहते हैं, परंतु वे ऊपर उठने का नियम नहीं जानते। जो लोग ऊपर उठने के नियम को जानते भी हैं, तो वे उसके लिए पुरुषार्थ नहीं करना चाहते। नियम के विरुद्ध तो कोई कार्य सिद्ध होता नहीं।”
इस बात को समझने के लिए वृक्षों का एक उदाहरण लेते हैं। “जो वृक्ष जितने ऊंचे होते हैं, उनकी जड़ें भी उसी हिसाब से जमीन के अंदर गहरी होती हैं। गहरी जड़ों वाले वृक्ष आंधी तूफान के आने पर भी मजबूती से खड़े रहते हैं, और लंबा जीवन जीते हैं। जिन वृक्षों की जड़ें अधिक गहरी नहीं होती, वे एक तेज़ तूफान के आते ही उखड़ जाते हैं, और टिक नहीं पाते।”
वृक्षों के इस उदाहरण से हमें यह सीखने को मिलता है, कि “यदि आप जीवन में ऊंचे उठना और समाज में टिकना चाहते हैं, तो आप की जड़ें भी गहरी होनी चाहिएं। अर्थात आप में उतनी ही अधिक नम्रता आदि गुण होने चाहिएं।” जैसे गहरी जड़ों के सहारे वृक्ष जमकर खड़ा रहता है, और तूफ़ान में भी टिका रहता है। इसी प्रकार से नम्रता आदि गुणों के कारण ही मनुष्य भी जमकर समाज में टिक पाता है। “ये नम्रता आदि गुणों की जड़ें, उसे समाज में उखड़ने अर्थात नष्ट नहीं होने देती।”
इस उदाहरण से “यदि मनुष्य लोग इतना सीख लें, तो वे भी जीवन में ऊंचे उठ सकते हैं, वृक्षों के समान स्थिर रह सकते हैं। समाज में धन सम्मान प्रतिष्ठा उच्च पद की प्राप्ति कर सकते हैं, और सुख से अपना जीवन जी सकते हैं। इसके बिना नहीं।”
“चाहे कोई कितना ही बुद्धिमान और मेहनती व्यक्ति हो, यदि वह ईश्वरीय नियमों का पालन नहीं करता, तो निश्चित रूप से जीवन में असफल और दुखी होगा। क्योंकि ईश्वर के बनाए नियमों को कोई भी नहीं तोड़ सकता। ‘नम्रता सभ्यता सेवा परोपकार निष्पक्ष व्यवहार आदि गुणों को धारण करके ही व्यक्ति जीवन में उन्नति कर सकता है।’ ईश्वर का यह नियम है। सुख प्राप्ति के लिए इसको समझना और इसका पालन करना अनिवार्य है।”
– स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक