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हर परिस्थिति में मन को खुश रखना चाहिए

हर परिस्थिति में मन को खुश रखना चाहिए

“जिन परिस्थितियों को आप बदल नहीं सकते, उनमें स्वयं को बदल लें, अर्थात अपना विचार बदल लें, और मन से सदा प्रसन्न रहें।”
संसार में प्रत्येक व्यक्ति के विचार संस्कार और कर्म अलग अलग होते हैं। “उसके पूर्व जन्म के संस्कारों के आधार पर वह अपने इस वर्तमान जन्म में सोचता, बोलता और आचरण करता है।” सबके विचार संस्कार अलग अलग होने के कारण, एक जैसी परिस्थिति में सब लोग एक जैसा नहीं सोच पाते। और इसी कारण से वे सब परिस्थितियों में प्रसन्न भी नहीं रह पाते।


“किसी का सोचने का ढंग बहुत कुछ ठीक है, किसी का आधा ठीक है, किसी का चौथाई ठीक है, किसी का बहुत ही गलत है, बिल्कुल भी ठीक नहीं है। यह सोचने का ढंग अलग अलग होने से सब लोग सुखी दुखी होते रहते हैं।” यदि आप दुख से बचना और सुख से जीना चाहते हों, तो उसका उपाय यह है


निम्नलिखित सिद्धांतो को प्रतिदिन दोहराइए और अपने मन में बिठा लीजिए/याद कर लीजिए। “सदा सब को अनुकूल परिस्थितियां नहीं मिल पाती। सदा सबकी इच्छाएं पूरी नहीं हो पाती। सारी इच्छाएं तो कभी भी नहीं पूरी हो सकती। जितनी जितनी इच्छाएं पूरी होती जाती हैं, उतनी उतनी इच्छाएं बढ़ती जाती हैं। जो इच्छाएं बच जाती हैं, और पूरी नहीं हो पाती, वे उस व्यक्ति को दुख देती हैं। उसमें क्रोध ईर्ष्या जलन आदि दोषों को उत्पन्न करती हैं, जिनके कारण वह व्यक्ति परेशान रहता है।”


इन परेशानियों से या अशांति से बचने का उपाय यह है, कि अपने सोचने के ढंग को ठीक किया जाए। “जब परिस्थिति आपके अनुकूल होती है, तब तो आप प्रसन्न होते ही हैं। विशेष कठिनाई तो तब होती है, जब परिस्थिति आपकी इच्छा के प्रतिकूल हो।”
“महत्त्व की बात तो यह है, कि जब‍‍ परिस्थिति आपके प्रतिकूल हो, तब भी आप दुखी न हों।” “जो व्यक्ति इतना सीख जाएगा, वह सदा प्रसन्न रहेगा, कभी दुखी नहीं होगा। वही वास्तविक विजेता कहलाएगा। वही सफल व्यक्ति कहलाएगा।” तो ऐसा कैसे हो पाएगा? यदि आप इस प्रकार से सोचें, तो ऐसा हो जाएगा
“जब जब भी प्रतिकूल परिस्थिति आवे, तो अपने मानसिक उत्साह को कम न होने दें, उसे बनाए रखें।” “जो मिला और जितना मिला, उस को देखें। उसी से प्रसन्न रहें। जो नहीं मिला, उस को न देखें। इसका नाम है – संतोष का पालन करना।” “यदि कोई व्यक्ति आपका अधिकार छीन ले, और आप उससे अपना अधिकार प्राप्त करने में समर्थ न हों, तो उस प्रतिकूल परिस्थिति में अपने मन को शांत रखें,” और मन में सोचें – “कोई बात नहीं, ईश्वर न्याय करेगा.” इस प्रकार से उस प्रतिकूल परिस्थिति में स्वयं को बदल लें, अपनी इच्छा/विचार को बदल लें।
“इस प्रकार से जो व्यक्ति संतोष का पालन करना सीख जाता है, प्रतिकूल परिस्थिति में स्वयं को बदलना सीख जाता है, वह जीवन में कभी कहीं दुखी नहीं होता। वह सदा सब जगह प्रसन्न रहता है। उसका जीवन सफल हो जाता है।”


इसलिए सोचने का ढंग ठीक करें। सदा संतोष का पालन करें। “क्योंकि आप यहां संसार में सुख पूर्वक जीवन जीने के लिए आए हैं, रो-रो कर जीवन काटने के लिए नहीं। आज तो संसार के लोग जीवन को जी नहीं रहे, बल्कि जीवन को काट रहे हैं।”
एक व्यक्ति से पूछा – “भाई ! आपका जीवन कैसा चल रहा है?” उसने कहा – “बस जिंदगी कट रही है.” “देखिए, लोग जीवन को जैसे तैसे काट रहे हैं, जी नहीं रहे। यह ठीक नहीं है। जीवन को काटना नहीं है, जीवन को आनंद से जीना है।” और उसका उपाय ऊपर बतला दिया है, कि “प्रत्येक परिस्थिति में अपने आप को समायोजित करना अर्थात एडजस्ट करना सीखें।”


—– स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, रोजड़, गुजरात।

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