दुष्ट स्वभाव के महामूर्ख लोगों से जरा बचकर रहें

“संसार में केवल ईश्वर ही ऐसा है, जो सर्वज्ञ होने के कारण, कभी भी, कोई भी गलती नहीं करता। बाकी तो अल्पज्ञ होने के कारण, सब जीवात्माएं कहीं न कहीं, कोई न कोई गलती करते ही हैं।”
जीवात्मा अल्पज्ञ और अल्पशक्तिमान है। जब वह शरीर धारण करता है, तो आप देखेंगे, कि “छोटे से बच्चे को कुछ भी नहीं आता। वह बैठ भी नहीं सकता। बोल नहीं सकता। खाना-पीना चलना फिरना आदि उसे कुछ भी काम करना नहीं आता। उसे सब कुछ सिखाना पड़़ता है। और जब कुछ भी काम करना नहीं आता, तो उन कामों को सीखने से पहले, छोटी-छोटी गलतियां उससे होती रहती हैं।”
धीरे-धीरे उसका बौद्धिक स्तर बढ़़ता है। धीरे-धीरे वह सब काम करना सीख लेता है। परन्तु उसके बाद भी अनजाने में या लापरवाही से, या जल्दबाजी से, कहीं स्वार्थ से, कहीं मूर्खता से इत्यादि अनेक कारणों से वह गलतियां करता ही रहता है। “जो लोग अपनी गलतियों का सुधार करने में ध्यान देते हैं, पूर्ण पुरुषार्थ करते हैं, उनकी गलतियां धीरे-धीरे कम होती जाती हैं। परंतु जो लोग आलसी प्रमादी स्वार्थी मूर्ख और दुष्ट होते हैं, भले ही उनका बौद्धिक सामर्थ्य बढ़़ जाए, उन्हें अपनी गलतियां समझ में भी आने लग जाएं, फिर भी अपनी मूर्खता दुष्टता स्वार्थ आदि कारणों से वे अपनी गलतियों को स्वीकार नहीं करते, उन्हें दूर नहीं करते। हठी अड़ियल स्वभाव के होने के कारण वे स्वयं दुखी रहते हैं तथा दूसरों को भी दुख देते हैं।”
इतना ही नहीं, “इस से भी अधिक खतरनाक बात यह है, कि वे स्वयं गलतियां करते हुए भी यह मानते हैं, कि बाकी सब तो मूर्ख हैं, क्योंकि वे सब लोग गलतियां करते हैं। केवल मैं ही महाबुद्धिमान हूं, क्योंकि मैं कभी गलती नहीं करता। ऐसे दुर्योधन आदि के वंशजों की संसार में कोई कमी नहीं है। ऐसे महामूर्ख लोग लाखों की संख्या में संसार में आज भी मिलते हैं।”
वास्तव में “ऐसे लोग महामूर्ख होते हैं, जो इतनी सामान्य बात भी नहीं समझते, कि जैसे बाकी सब आत्माएं अल्पज्ञ हैं, वैसे ही मैं भी अल्पज्ञ आत्मा हूं। यदि दूसरे लोग गलतियां करते हैं, तो मैं भी तो कर सकता हूं। कभी तो मुझसे भी गलती हो जाती होगी।” इतनी सामान्य सी बात भी वे नहीं समझते, और स्वीकार नहीं करते। अब आप सोचिए, इससे बड़ी मूर्खता और क्या होगी?
“इसलिए ऐसे हठी दुराग्रही मूर्ख दुष्ट स्वभाव के महामूर्ख लोगों से जरा बचकर रहें। उन से सावधान रहें। ऐसे लोग अपनी हानियां तो करते ही हैं, साथ में समाज की भी बड़ी बड़ी हानियां करते हैं। इसमें कारण उनकी मूर्खता हठधर्मिता और मिथ्या अभिमान आदि दोष ही होते हैं।”
–स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक