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आजकल आप की दिनचर्या कैसी चल रही है?

आजकल आप की दिनचर्या कैसी चल रही है?

“आलसी लोग ‘आज’ का काम ‘कल’ पर टालते रहते हैं। और उनका वह ‘कल’ कभी नहीं आता।”


जब मैं वेदप्रचार कार्य में लोगों से बातचीत करता हूं। उनसे उनकी दिनचर्या पूछता हूं, कि “आजकल आप की दिनचर्या कैसी चल रही है? क्या आप रात को जल्दी सोते हैं? क्या सुबह जल्दी उठते हैं? क्या आप व्यायाम करते हैं? क्या ईश्वर की उपासना चल रही है या नहीं? घर में दैनिक यज्ञ चलता है या नहीं? इत्यादि।”


जब मैं इस प्रकार की बातें लोगों से पूछता हूं, तो बहुत से लोग कहते हैं, कि “ईश्वर की कृपा से हमारी दिनचर्या उपासना ठीक चल रही है।” परंतु कुछ लोग ऐसे भी मिलते हैं, जो ऐसा कहते हैं कि “आजकल दिनचर्या थोड़ी बिगड़ी हुई है.” फिर मैं पूछता हूं, कि “अच्छा कब से ठीक कर लेंगे?” तो उनका उत्तर होता है, “बस, कल से शुरु कर दूंगा.” कोई कहता है, “अगले सोमवार से ठीक कर लूंगा।”
                                फिर एक दो महीने बाद मिलने पर मैं उनसे पूछता हूं, कि “अब दिनचर्या कैसी चल रही है?” तब भी उनका उत्तर वही होता है, कि “कल से ठीक कर लूंगा. अगले सोमवार से ठीक कर लूंगा।” और मैं वर्षों तक उन लोगों से ऐसे ही उनकी दिनचर्या पूछता रहता हूं। और मुझे वर्षों तक लगभग वही उत्तर मिलता है, कि “मैं कल से ठीक कर लूंगा। मैं अगले सोमवार से ठीक कर लूंगा।” ऐसा सोच कर वे स्वयं को धोखा देते रहते हैं। और ऐसा बोलकर मुझे भी धोखा देने का प्रयास करते रहते हैं।


इससे पता चलता है, कि उन लोगों में वैदिक दिनचर्या के प्रति कोई रुचि श्रद्धा विशेष नहीं है। शाब्दिक रूप से वे लोग स्वीकार करते हैं कि “रात को जल्दी सोना चाहिए, सुबह जल्दी उठना चाहिए, व्यायाम करना चाहिए, यज्ञ हवन संध्या उपासना आदि प्रतिदिन करने चाहिएं। स्वाध्याय भी करना चाहिए। दिनचर्या समय के अनुसार नियमित रूप से पूरी करनी चाहिए।” बस, बातें ही शाब्दिक रूप से ही होती रहती हैं, व्यवहार में आचरण में कुछ विशेष नहीं आ पाती।


इस प्रकार के जो आलसी लोग हैं, लापरवाह लोग हैं, वर्षों तक ऐसे ही टालते रहते हैं, कि “कल से करूंगा, सोमवार से करूंगा, इत्यादि।” उनका ‘कल’ कभी नहीं आता. उनका ‘सोमवार’ कभी नहीं आता। कभी आता भी है, तो 10 15 दिन में वह आचरण फिर से छूट जाता है। और वे फिर से ढीले हो जाते हैं।
                        मेरा आप सब से निवेदन है, कि “अपनी वैदिक दिनचर्या में शुभ कर्मों को अवश्य जोड़ें। आलस्य प्रमाद आदि दोषों से बचें। मनुष्य जीवन बहुत मुश्किल से मिलता है। इसका मूल्य समझें।” कुछ ही समय में बुढ़ापा आ जाएगा। तब होश आएगा, और पश्चाताप होगा, कि “हमने बहुत व्यर्थ में समय खो दिया। अपना सारा जीवन नष्ट कर दिया। सार कुछ नहीं निकला। अब समझ में आ रहा है, कि शुभ कर्मों का आचरण करना चाहिए था। परंतु हमने अपनी मूर्खता से, आलस्य से, लापरवाही से सब अवसर खो दिए। अब हमें पश्चाताप हो रहा है।”


परंतु बुढ़ापे तक सारा समय तो गंवा दिया। तब पश्चाताप करने से क्या लाभ? “इसलिए अभी से सावधान हो जाएं, और समय का पूरा लाभ उठाएं। आज से ही अपनी दिनचर्या में उत्तम कार्यों का समावेश करें, ताकि बुढ़ापे में पश्चाताप न करना पड़े। और अगले जीवन/जन्म की यात्रा पर सर ऊंचा करके अर्थात प्रसन्नता से जाएं। सर नीचा कर के नहीं।”
—- स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक

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