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असफल होने पर दुखी या निराश न हो

असफल होने पर दुखी या निराश न हो

“जीवन में सफलता और असफलता तो सदा चलती ही रहती है, जैसे जागना और सोना बारी बारी से होता रहता है।”
जीवन को सरल और कठिन बनाने के लिए व्यक्ति का चिंतन या विचार बहुत महत्त्वपूर्ण होता है। “यदि किसी का चिंतन सही है, तो उसका जीवन सरल हो जाएगा, और बड़े प्रेम से आनंद से हंसते खेलते वह जीवन को पूरा कर लेगा। परंतु यदि किसी का चिंतन का स्तर ठीक नहीं है। उसे ठीक प्रकार से सोचना नहीं आता, तो उसके लिए जीवन, पहाड़ पर चढ़ने जैसा कठिन हो जाएगा। अर्थात जीवन जीना बहुत भारी हो जाएगा। छोटी-छोटी बात में वह दुखी हो जाएगा। परेशान हो जाएगा। चिंतन की विधि ठीक न होने से कुछ लोग तो डिप्रेशन तक में चले जाते हैं।” इसलिए हम/आपको जीवन जीने की, या सही ढंग से सोचने/विचारने की कला सीख लेनी चाहिए। और वह यही है, कि “यदि हम/आप अपने कार्य में सफल हुए, तो ऐसा सोचना चाहिए, कि “बहुत अच्छी बात है।” और यदि हम/आप अपने कार्य में असफल भी हो गये, तब भी दुखी नहीं होना चाहिए,” और यह सोचना चाहिए, कि “यह तो संसार है, यहां सब दिन एक जैसे नहीं होते। थोड़ा बहुत ऊंचा नीचा तो होता ही रहता है। इस बार पुरुषार्थ में कुछ कमी रही, अगली बार ऐसा नहीं होने देंगे। कोई चिंता की बात नहीं है। अगली बार खूब परिश्रम करेंगे और अपने कार्य में सफल हो जाएंगे।”
जैसे कोई व्यक्ति रात्रि को सोकर सुबह जाग जाता है, अथवा दिन भर जागने के बाद रात को सो जाता है, तो इसमें कोई व्यक्ति आश्चर्य नहीं करता। क्योंकि प्रतिदिन ये दोनों क्रियाएं होती रहती हैं, इसलिए लोगों ने इन दोनों क्रियाओं को स्वाभाविक मान लिया है। और मनोविज्ञान का नियम यह है, कि “जो घटना स्वाभाविक मान ली जाती है, तो उस घटना के होने पर फिर लोगों को दुख नहीं होता, और आश्चर्य भी नहीं होता।”
इसी प्रकार से हम/आप दिन में बीसियों प्रकार के कार्य करते रहते हैं। उन में से किसी कार्य में सफलता मिलती है, तो किसी में असफलता भी मिलती है। ये दोनों भी बारी बारी से होते रहते हैं। तो “जैसे हम/आप जागने सोने में आश्चर्य नहीं करते, दुखी परेशान नहीं होते, क्योंकि उन दोनों क्रियाओं को हमने स्वाभाविक मान लिया है। इसी प्रकार से सफलता और असफलता भी दिन में कितनी ही बार होती रहती है, और आगे भी होती रहेगी। उसे भी यदि हम/आप स्वाभाविक मान लेवें, तो उसमें भी हम/आप दुखी या आश्चर्यचकित नहीं होंगे।” यदि कभी कहीं किसी काम में असफल हो भी गए, तो उस समय चिंता न करें, बल्कि यह संकल्प करें कि, “अब तो गलती हो गई, अगली बार गलती नहीं होने देंगे।”
“यदि आपने अपना चिंतन/ विचार/ स्वभाव इस प्रकार का बना लिया, तो असफल होने पर आप दुखी या निराश नहीं होंगे, आपको जीवन जीना बहुत आसान लगेगा, कठिन नहीं लगेगा। और आप खुशी-खुशी आनंद से अपना जीवन बिताएंगे।”
– स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक

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