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ईश्वर का संविधान सदा याद रखें

ईश्वर का संविधान सदा याद रखें

“अनजाने में की गई गलतियां कम क्रोध को उत्पन्न करती हैं। जानबूझकर की गई गलतियां अधिक क्रोध को उत्पन्न करती हैं।”
संसार में ऐसा देखा जाता है, कि 5 वर्ष की आयु से छोटे बच्चे अबोध होते हैं। उनको उस आयु में दुनियादारी का पता नहीं होता। सही गलत का भी अधिक पता नहीं होता। इसलिए उन से गलती होना स्वाभाविक है। माता पिता और अन्य बड़े लोग इस बात को अच्छी तरह समझते हैं। “छोटे बच्चों द्वारा छोटी छोटी गलतियां करने पर, माता पिता और दूसरे लोगों को क्रोध भी कम उत्पन्न होता है। इसलिए जब उन छोटे बच्चों से गलती हो जाती है, तो दूसरे लोग सहन कर लेते हैं।” परंतु जैसे जैसे बच्चे बड़े होने लगते हैं, तो उन्हें सब कुछ सिखाया जाता है। उठना बैठना बोलना चलना खाना-पीना आदि आदि।
अब जब 5/8 वर्ष की आयु में बच्चे थोड़ा थोड़ा समझने लगते हैं, तो उनकी जिम्मेदारी भी बढ़ने लगती है। तब माता पिता उन से यह आशा रखते हैं, कि “अब बच्चे बड़े हो रहे हैं, अब इनकी बुद्धि या समझ बढ़ रही है। अब ये गलतियां नहीं करेंगे।” इस प्रकार से बच्चों का विकास होता जाता है, और उनकी गलतियां भी कम होती जाती हैं।
फिर भी 8-10-12-14-15 वर्ष की आयु में बच्चे जो गलतियां करते हैं, तो माता-पिता उन का निरीक्षण परीक्षण करते रहते हैं, कि “ये जानबूझ कर गलती कर रहे हैं, या अनजाने में हो गई हैं। यदि अनजाने में गलती हुई हो, तो माता-पिता को क्रोध कम आता है। यदि बच्चा जानबूझ कर गलती करता है, तो क्रोध अधिक उत्पन्न होता है।”
इस मनोवैज्ञानिक नियम को ध्यान में रखते हुए छोटे बच्चों से ऐसी आशा कम रखनी चाहिए, कि वे गलती नहीं करेंगे। और उन्हें माफ करते रहना चाहिए। साथ ही साथ उनको व्यवहार भी सिखाते रहना चाहिए, कि “जैसा हम कहें, वैसा करो।” यदि बच्चे भी वैसा ही करते हैं, तो बच्चों का विकास उत्तम होता जाता है। परिवार में सब को अनुकूलता रहती है।
“यदि बार-बार सिखाने पर भी बच्चे नहीं सीखते, बुद्धिमत्ता का उपयोग नहीं करते, जानबूझकर गलतियां करते हैं, तो ऐसी स्थिति में फिर माता पिता उन को दंडित करते हैं। क्योंकि गलतियां माफ़ करने की भी एक सीमा होती है।” यदि बच्चों को ठीक से प्रशिक्षण नहीं दिया जाएगा, तो उनकी गलतियां बढ़ती जाएंगी। और वे बड़े होकर दुष्ट व्यक्ति बनेंगे। “इसलिए उनको सिखाना भी आवश्यक है। और यदि न सीखें, तो दंड देना भी आवश्यक है।” वेदों का एक सिद्धांत है, कि “दंड के बिना कोई सुधरता नहीं है.” यह नियम सभी लोगों पर लागू होता है, चाहे बच्चे हों, चाहे बड़े हों।
शायद “इसीलिए बच्चों को छोटी उम्र में, बुद्धि कम होने से, पेंसिल से लिखने का काम देते हैं, ताकि उनकी गलतियां रबर से मिटाई जा सकें, और उनका सुधार किया जा सके। बड़े होने पर लिखने के लिए पेन दिया जाता है।” शायद इसमें इनका यह संदेश है, कि “अब बुद्धि बढ़ जाने के कारण बच्चे गलतियां नहीं करेंगे। क्योंकि यदि गलतियां की, तो अब ये मिटने वाली नहीं हैं। अर्थात यदि अब गलतियां करेंगे, तो अब आप को माफ नहीं किया जाएगा। अब आप को दंड दिया जाएगा।”
एक बात और है, इस का भी ध्यान रखना चाहिए। कि “यह माफ़ करने का नियम मनुष्यों की तरफ से है, अर्थात मनुष्य लोग बच्चों की गलतियां माफ करते हैं। या बड़े लोगों की भी उन्हीं गलतियों को माफ करते हैं, जो अनजाने में की गई हों।” “ईश्वर तो किसी की भी, एक भी गलती को माफ नहीं करता। न बच्चे की, न बड़े की। न अनजाने में की गई गलती को माफ करता है, और न ही जान बूझकर की गई गलती को ईश्वर माफ करता है।” “हां, ईश्वर का यह नियम अवश्य है, कि जो व्यक्ति अनजाने में गलती करता है, उसको दंड कम मात्रा में देता है। और जो जानबूझ कर गलती करता है, उसको ईश्वर अधिक दंड देता है।”
“इसलिए ईश्वर का संविधान सदा याद रखें। गलतियां न करें, और ईश्वर के दंड से बचें।”
स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक

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