संयम से जीवन को जीना चाहिए

“जैसे जीवन में सुख और दुख साथ साथ चलते हैं, वैसे ही राग और द्वेष भी साथ साथ चलते हैं।”
सफलता और असफलता प्रायः जीवन में आती रहती हैं। “व्यक्ति अनेक कार्यों में सफल हो जाता है, और कुछ कार्यों में असफल भी होता है। सब कार्यों में कोई भी व्यक्ति सदा सफल नहीं हो पाता। क्योंकि वह सर्वशक्तिमान नहीं है।” उसे अपने कार्यों की संपन्नता/सफलता के लिए अनेक दूसरे व्यक्तियों का सहयोग लेना पड़ता है। दूसरे व्यक्तियों की बुद्धि विचार संस्कार भिन्न भिन्न हैं। “जो व्यक्ति आपके विचारों संस्कारों गुणों स्वभाव आदि को समझता है, वह आपकी इच्छा के अनुकूल आपको सहयोग कर देता है। जो आपके विचारों संस्कारों आदि को नहीं समझता, वह आपकी इच्छा के अनुकूल आपको सहयोग नहीं देता। जब वह ठीक समय पर आपको आपकी इच्छा के अनुकूल सहयोग नहीं देता, तो आपके काम में बाधा उत्पन्न होती है। और जितनी सफलता आप चाहते थे, उतनी मात्रा में आप सफल नहीं हो पाते हैं। तब आपको दुख होता है। उस दुष्ट व्यक्ति प्रति क्रोध आता है। द्वेष भी उत्पन्न होता है। इसलिए बहुत सोच समझकर अपना जीवन चलाना चाहिए।”
कहने का सार यह हुआ, कि “जब आपको अपने कार्यों में सफलता मिले, तो बहुत उछल-कूद न करें। उस सफलता पर सामान्य रूप से खुशी मनाएं। क्योंकि जब आप कभी किसी कार्य में असफल हो जाएंगे, तब आपको दुख भी उसी अनुपात में होगा, जिस अनुपात में आप ने सफलता की खुशी मनाई थी।”
“असफल होने पर जब दुख आएगा, तो कहीं ऐसा न हो, कि आप डिप्रेशन में चले जाएं। उस समस्या से बचने के लिए यह आवश्यक है, कि सफलता के अवसर पर भी सामान्य रूप से खुशी मनाएं, ज्यादा खुश न हों।” इसलिए सदा संयम से जीवन को जीना चाहिए। “सुख-दुख दोनों को समान बनाकर चलने का प्रयत्न करें। तभी आप ठीक प्रकार से जीवन को जी पाएंगे, और डिप्रेशन आदि रोगों से अपना बचाव कर पाएंगे।”
– स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक