क्या आप जीवन में सफलता और सुख प्राप्त करना चाहते हैं ?

“यदि आप जीवन में सफलता और सुख प्राप्त करना चाहते हैं, तो सिर्फ सोचते ही न रहें। ठीक ढंग से सोचें, और समय पर ठीक निर्णय लेकर, उस पर शीघ्र ही आचरण भी करें।”
कुछ लोग काम करने में बड़े उतावले होते हैं। सब कामों में वे जल्दबाजी़ करते हैं। और इस जल्दबाज़ी के कारण बहुत बार वे हानियां उठाते हैं। “जो लोग जल्दबाजी करते हैं, उनमें से अधिकतर लोग ऐसे होते हैं, जो थोड़ा सा विचार करके शीघ्र निर्णय लेते हैं, अर्थात पूरा विचार नहीं करते। दूरदर्शिता से विचार नहीं करते। जल्दबाजी में गलत निर्णय लेते हैं, और तुरंत काम कर देते हैं, जिसका परिणाम बाद में अच्छा नहीं आता, बल्कि दुखदायक होता है। ऐसे लोग जीवन में असफल हो जाते हैं।”
कुछ दूसरे लोग ऐसे होते हैं, जो काम करने के विषय में सोचते रहते हैं, सोचते ही रहते हैं। “महीनों तक सोचते रहते हैं, करते कुछ नहीं। बस योजनाएं बनाते रहते हैं, उन्हें बदलते रहते हैं। परन्तु क्रियात्मक रूप से पुरुषार्थ कुछ नहीं करते। ऐसे लोग भी असफल कहलाते हैं।”
“पहले प्रकार के लोग गलत काम करके हानि उठाते हैं। दूसरे प्रकार के लोग काम करते ही नहीं, वे इस प्रकार से हानि उठाते हैं। इसलिए दोनों ही प्रकार के लोग सदा दुखी रहते हैं।”
वास्तव में सही सोचना भी चाहिए और काम भी करना चाहिए। वेदों के अनुसार काम करने की सही विधि इस प्रकार से है, कि “किसी भी विषय पर खूब चिंतन करें। सभी दृष्टिकोणों से विचार करें। यदि हम ऐसा काम करेंगे, तो क्या क्या लाभ होंगे। और यदि नहीं करेंगे, तो क्या क्या हानियां होंगी। हानि और लाभ की ठीक-ठीक तुलना करें।” बुद्धिमत्ता से निर्णय लेवें। ठीक निर्णय लेने की यह विधि है। “जिस पक्ष में लाभ अधिक और हानि कम दिखाई दे, उस काम को करने का निर्णय लें। और जिस कार्य में हानि अधिक तथा लाभ कम दिखाई दे, उस काम को न करें।”
जो व्यक्ति इस प्रकार से निर्णय लेता है, वह बुद्धिमान कहलाता है। “वह जल्दबाजी़ भी नहीं करता, और केवल सोचता भी नहीं रहता। बल्कि ठीक समय पर ठीक निर्णय लेता है, और उसके बाद तुरंत कार्यवाही आरंभ करता है। ऐसा व्यक्ति अपने कार्यों में सफल हो जाता है। उसे लाभदायक एवं सुखद परिणाम प्राप्त होते हैं।”
“वेदों और ऋषियों द्वारा बताई गई, सही सोचने, निर्णय लेने, तथा काम करने की इस पद्धति का लाभ उठाएं। और अपने जीवन को सफल तथा सुखमय बनावें।”
—- स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक