पुरुषार्थ का फल

"मन को एकाग्र करके यदि आप अपने अंदर ही ईश्वर से प्रार्थना करें। और व्यवहार में उस प्रार्थना के अनुकूल पूरा पुरुषार्थ करें। तो आपको बहुत कुछ मिल जाएगा।"
किसी को धन चाहिए, किसी को पुत्र चाहिए, किसी को नौकरी चाहिए, किसी को कुछ चाहिए। “इन सब चीजों की प्राप्ति के लिए लोग दूर-दूर प्रचलित तीर्थ स्थानों की, मंदिरों की यात्राएं कर रहे हैं। इतनी दूर भटकने की कोई आवश्यकता नहीं है।” क्योंकि जो इन सब वस्तुओं का देने वाला है, वह ईश्वर है। वह आपके अंदर ही बैठा है।
“जब वह आपके इतना निकट है, तो फिर दूर दूर जाने की क्या आवश्यकता है ?”
दूसरी बात -
“लोग इन सब चीजों को मुफ्त में प्राप्त करना चाहते हैं, जबकि ये सब वस्तुएं मुफ्त में मिलती नहीं हैं।” इनकी प्राप्ति के लिए बहुत पुरुषार्थ करना पड़ता है। वह पुरुषार्थ करना भी आपके आधीन है।
“अब यदि आप अपने अंदर विद्यमान सर्वज्ञ सर्वशक्तिमान न्यायकारी ईश्वर की स्तुति प्रार्थना उपासना करेंगे, और व्यवहार में पूरा पुरुषार्थ करेंगे, तो उसके अनुसार आप जिस जिस वस्तु धन बल विद्या पुत्र नौकरी आदि प्राप्त करने के अधिकारी बन पाएंगे, जितनी वस्तुएं प्राप्त करने के पात्र बन पाएंगे, वे सब वस्तुएं उतनी मात्रा में आपको ईश्वर दे देगा। आप के पुरुषार्थ को देखकर आप के माता-पिता और समाज के लोग भी आपका सहयोग करेंगे।”
"परंतु ये सब वस्तुएं उतनी मात्रा में नहीं मिलेंगी, जितनी मात्रा में आप चाहते हैं। ये सब वस्तुएं आपको उतने अनुपात में मिलेंगी, जितना आप पुरुषार्थ करेंगे।"
इसलिए आप ईश्वर पर यह आरोप नहीं लगा सकते, कि “मैंने इतना पुरुषार्थ किया, फिर भी मुझे ईश्वर ने बहुत कम दिया। या देकर भी वापस छीन लिया। अब यदि आपको वे वस्तुएं नहीं मिल पाती अथवा कम मात्रा में मिलती हैं, तो इसका दोषी ईश्वर नहीं है।
" ईश्वर पर कभी भूल कर भी ऐसा दोष न लगाएं। क्योंकि वह ऐसा काम कभी नहीं करता। ऐसे कामों में मनुष्य का ही हाथ देखा जाता है। या कभी-कभी प्राकृतिक परिस्थितियां भी ऐसी बन जाती हैं, कि जैसा आपने पुरुषार्थ किया था, उस के अनुकूल फल वर्तमान में नहीं मिल पाया।
“तो ऐसी स्थिति में यदि किसी मनुष्य ने अन्याय करके आप का अधिकार संपत्ति आदि छीन ली हो, तो उसका दोषी मनुष्य है। और यदि कोई प्राकृतिक दुर्घटना से आंधी तूफान बाढ़ भूकंप आदि से आपको कोई संपत्ति आदि की हानियां हो गई हों, तो उसका दोषी भी ईश्वर नहीं है।” “ईश्वर ने कोई योजनाबद्ध आप की हानि नहीं की है। यह आंधी तूफान बाढ़ भूकंप आदि से जो दुख मिलते हैं, यह कोई आपका किसी कर्म का फल नहीं है। यह तो प्राकृतिक दुर्घटना मात्र है।
” संसार में प्राकृतिक दुर्घटनाएं होती रहती हैं, आगे भी होती रहेंगी। “जैसे सड़क पर मानवकृत दुर्घटनाओं से बचना आपकी जिम्मेदारी है। इसी प्रकार से आंधी तूफान बाढ़ भूकंप आदि प्राकृतिक घटनाओं से बचना भी आपकी ही जिम्मेदारी है। इसमें ईश्वर दोषी नहीं है। इसलिए ईश्वर पर कभी भी ऐसा दोष न लगाएं।”
बल्कि उसका सदा हर परिस्थिति में धन्यवाद ही करें, कि “हे ईश्वर! हम जितना भी संसार में सुख प्राप्त कर पा रहे हैं, यह सब आपकी कृपा का और न्याय दया आदि गुणों का ही फल है। आपकी कृपा ऐसे ही सदा बनी रहे। आप हमें इतनी विद्या बुद्धि बल शक्ति सामर्थ्य दीजिए, जिससे कि हम संसार की दुर्घटनाओं से बचते हुए अपने जीवन को सुरक्षित एवं सुखमय बना सकें।”
हां, इन दुर्घटनाओं में जो आप की हानि हो जाती है। “यदि आप पूरी सावधानी से जीवन जिएंगे, दुर्घटनाओं से बचने का पूरा प्रयत्न करेंगे, तो मानवकृत दुर्घटनाओं से अथवा प्राकृतिक दुर्घटनाओं से, जो भी आप की हानि होती है, समय आने पर ईश्वर उसकी पूर्ति आपको अवश्य कर देगा।”
“शर्तें लागू।”
शर्त यह है कि “आपको अपनी संपत्ति जीवन आदि की सुरक्षा का पूरा प्रयत्न स्वयं करना पड़ेगा. उसके बाद भी यदि कोई हानि होती है, तो फिर ईश्वर आपकी क्षतिपूर्ति करेगा। यदि आप अपनी संपत्तियों की सुरक्षा ठीक प्रकार से नहीं करते, आलस्य प्रमाद करते हैं, तो आप की हानि की पूर्ति ईश्वर नहीं करेगा।”
—- स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक